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Thursday, January 31, 2013

Fwd: [HamareSaiBaba] श्री साई सच्चरित्र अध्याय 13



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2013/1/31
Subject: [HamareSaiBaba] श्री साई सच्चरित्र अध्याय 13
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>





अध्याय 13 

अन्य कई लीलाएँ-रोगनिवारण

1.भीमाजी पाटील
2.बाला गणपत दर्जी
3.बापूसाहेब बूटी
4.आलंदीस्वामी
5. काका महाजनी
6.हरदा के दत्तोपंत ।
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माया की अभेद्य शक्ति
बाबा के शब्द सदैव संक्षिप्त, अर्थपूर्ण, गूढ़ और विद्वतापूर्ण तथा समतोल रहते थे । वे सदा निश्चिंत और निर्भय रहते थे । उनका कथन था कि "मैं फकीर हूँ, न तो मेरे स्त्री ही है और न घर-द्घार ही । सब चिंताओं को त्याग कर, मैं एक ही स्थान पर रहता हूँ । फिर भी माया मुझे कष्ट पहुँचाया करती हैं । मैं स्वयं को तो भूल चुका हूँ, परन्तु माया मुझे नहीं भूलती, क्योंकि वह मुझे अपने चक्र में फँसा लेती है । श्रीहरि की यह माया ब्रहादि को भी नहीं छोड़ती, फिर मुझ सरीखे फकीर का तो कहना ही क्या हैं ? परन्तु जो हरि की शरण लेंगे, वे उनकी कृपा से मायाजाल से मुक्त हो जायेंगे ।" इस प्रकार बाबा ने माया की शक्ति का परिचय दिया । भगवान श्रीकृष्ण भागवत में उदृव से कहते कि "सन्त मेरे जीवित स्वरुप हैं" और बाबा का भी कहना यही था कि वे भाग्यशाली, जिनके समस्त पाप नष्ट हो गये हो, वे ही मेरी उपासना की ओर अग्रसर होते है, यदि तुम केवल 'साई साई' का ही स्मरण करोगे तो मैं तुम्हें भवसागर से पार उतार दूँगा । इन शब्दों पर विश्वास करो, तुम्हें अवश्य लाभ होगा । मेरी पूजा के निमित्त कोई सामग्री या अष्टांग योग की भी आवश्यकता नहीं है । मैं तो भक्ति में ही निवास करता हूँ । अब आगे देखिये कि अनाश्रितों के आश्रयदाता साई ने भक्तों के कल्याणार्थ क्या-क्या किया ।

भीमाजी पाटील : सत्य साई व्रत
नारायण गाँव (तालुका जुन्नर, जिला पूना) के एक महानुभाव भीमाजी पाटील को सन् 1909 में वक्षस्थल में एक भयंकर रोग हुआ, जो आगे चलकर क्षय रोग में परिणत हो गया । उन्होंने अनेक प्रकार की चिकित्सा की, परन्तु लाभ कुछ न हुआ । अन्त में हताश होकर उन्होंने भगवान से प्रार्थना की, "हे नारायण ! हे प्रभो ! मुझ अनाथ की कुछ सहायता करो !" यह तो विदित ही है कि जब हम सुखी रहते है तो भगवत्-स्मरण नहीं करते, परन्तु ज्यों ही दुर्भाग्य घेर लेता है और दुर्दिन आते है, तभी हमें भगवान की याद आती है । इसीलिए भीमाजी ने भी ईश्वर को पुकारा । उन्हें विचार आया कि क्यों न साईबाबा के परम भक्त श्री. नानासाहेब चाँदोरकर से इस विषय में परामर्श लिया जाय और इसी हेतु उन्होंने अपना स्थिति पूर्ण विवरण सहित उनके पास लिख भेजी और उचित मार्गदर्शन के लिये प्रार्थना की । प्रत्युत्तर में श्री. नानासाहेब ने लिख दिया कि "अब तो केवल एक ही उपाय शेष है और वह है साई बाबा के चरणकमलों की शरणागति ।" नानासाहेब के वचनों पर विश्वास कर उन्होंने शिरडी-प्रस्थान की तैयारी की । उन्हें शिरडी में लाया गया और मस्जिद में ले जाकर लिटाया गया । श्री. नानासाहेब और शामा भी इस समय वहीं उपस्थित थे । बाबा बोले कि ,"यह पूर्व जन्म के बुरे कर्मों का ही फल है । इस कारण मै इस झंझट में नहीं पड़ना चाहता ।" यह सुनकर रोगी अत्यन्त निराश होकर करुणपूर्ण स्वर में बोला कि, "मैं बिल्कुल निस्सहाय हूँ और अन्तिम आशा लेकर आपके श्री-चरणों में आया हूँ । आपसे दया की भीख माँगता हूँ । हे दीनों के शरण ! मुझ पर दया करो ।" इस प्रार्थना से बाबा का हृदय द्रवित हो आया और वे बोले कि "अच्छा, ठहरो ! चिन्ता न करो । तुम्हारे दुःखों का अन्त शीघ्र होगा । कोई कितना भी दुःखित और पीड़ित क्यों न हो, जैसे ही वह मस्जिद की सीढ़ियों पर पैर रखता है, वह सुखी हो जाता हैं । मस्जिद का फकीर बहुत दयालु है और वह तुम्हारा रोग भी निर्मूल कर देगा । वह तो सब पर प्रेम और दया रखकर रक्षा करता हैं ।" रोगी को हर पाँचवे मिनट पर खून की उल्टियाँ हुआ करती थी, परन्तु बाबा के समक्ष उसे कोई उल्टी न हुई । जिस समय से बाबा ने अपने श्री-मुख से आशा और दयापूर्ण शब्दों में उक्त उदगार प्रगट किये, उसी समय से रोग ने भी पल्टा खाया । बाबा ने रोगी को भीमाबाई के घर में ठहरने को कहा । यह स्थान इस प्रकार के रोगी को सुविधाजनक और स्वास्थ्यप्रद तो न था, फिर भी बाबा की आज्ञा कौन टाल सकता था ? वहाँ पर रहते हुए बाबा ने दो स्वप्न देकर उसका रोग हरण कर लिया । पहले स्वप्न में रोगी ने देखा कि वह एक विद्यार्थी है और शिक्षक के सामने कविता मुखाग्र न कर सकने के दण्डस्वरुप बेतों की मार से असहनीय कष्ट भोग रहा है । दूसरे स्वप्न में उसने देखा कि कोई हृदय पर नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे की ओर पत्थर घुमा रहा है, जिससे उसे असह्य पीड़ा हो रही हैं । स्वप्न में इस प्रकार कष्ट पाकर वह स्वस्थ हो गया और घर लौट आया । फिर वह कभी-कभी शिऱडी आता और साईबाबा की दया का स्मरण कर साष्टांग प्रणाम करता था । बाबा अपने भक्तों से किसी वस्तु की आशा न रखते थे । वे तो केवल स्मरण, दृढ़ निष्ठा और भक्ति के भूखे थे । महाराष्ट्र के लोग प्रतिपक्ष या प्रतिमास सदैव सत्यनारायण का व्रत किया करते है । परन्तु अपने गाँव पहुँचने पर भीमाजी पाटीन ने सत्यनारायण व्रत के स्थान पर एक नया ही 'सत्य साई व्रत' प्रारम्भ कर दिया ।

बाला गणपत दर्जी
एक दूसरे-भक्त, जिनका नाम बाला गणपत दर्जी था, एक समय जीर्ण ज्वर से पीड़ित हुए । उन्होंने सब प्रकार की दवाइयाँ और काढ़े लिये, परन्तु इनसे कोई लाभ न हुआ । जब ज्वर तिलमात्र भी न घटा तो वे शिरडी दौडे़ आये और बाबा के श्रीचरणों की शरण ली । बाबा ने उन्हें विचित्र आदेश दिया कि, "लक्ष्मी मंदिर के पास जाकर एक काले कुत्ते को थोड़ासा दही और चावल खिलाओ ।" वे यह समझ न सके कि इस आदेश का पालन कैसे करें ? घर पहुँचकर चावल और दही लेकर वे लक्ष्मी मंदिर पहुँचे, जहाँ उन्हें एक काला कुत्ता पूँछ हिलाते हुए दिखा । उन्होंने वह चावल और दही उस कुत्ते के सामने रख दिया, जिसे वह तुरन्त ही खा गया । इस चरित्र की विशेषता का वर्णन कैसे करुँ कि उपयुर्क्त उपाय करने मात्र से ही बाला दर्जी का ज्वर हमेशा के लिये जाता रहा ।

बापूसाहेब बूटी
श्रीमान् बापूसाहेब बूटी एक बार अम्लपित्त के रोग से पीड़ित हुए । उनकी आलमारी में अनेक औषधियाँ थी, परन्तु कोई भी गुणकारी न हो रही थी । बापूसाहेब अम्लपित्त के कारण अति दुर्बल हो गये और उनकी स्थिति इतनी गम्भीर हो गई कि वे अब मस्जिद में जाकर बाबा के दर्शन करने में भी असमर्थ थे । बाबा ने उन्हें बुलाकर अपने सम्मुख बिठाया और बोले, "सावधान, अब तुम्हें दस्त न लगेंगे ।" अपनी उँगली उठाकर फिर कहने लगे "उलटियाँ भी अवश्य रुक जायेंगी ।" बाबा ने ऐसी कृपा की कि रोग समूल नष्ट हो गया और बूटीसाहेब पूर्ण स्वस्थ हो गये ।
एक अन्य अवसर पर भी वे हैजा से पीडि़त हो गये । फलस्वरुप उनकी प्यास अधिक तीव्र हो गई । डाँ. पिल्ले ने हर तरह के उपचार किये, परन्तु स्थिति न सुधरी । अन्त में वे फिर बाबा के पास पहुँचे और उनसे तृशारोग निवारण की औषधि के लिये प्रार्थना की । उनकी प्रार्थना सुनकर बाबा ने उन्हें "मीठे दूध में उबाला हुआ बादाम, अखरोट और पिस्ते का काढ़ा पियो ।" - यह औषधि बतला दी ।
दूसरा डाँक्टर या हकीम बाबा की बतलाई हुई इस औषधि को प्राणघातक ही समझता, परन्तु बाबा की आज्ञा का पालन करने से यह रोगनाशक सिद्ध हुई और आश्चर्य की बात है कि रोग समूल नष्ट हो गया ।

आलंदी के स्वामी
आलंदी के एक स्वामी बाबा के दर्शनार्थ शिरडी पधारे । उनके कान में असह्य पीड़ा थी, जिसके कारण उन्हें एक पल भी विश्राम करना दुष्कर था । उनकी शल्य चिकित्सा भी हो चुकी थी, फिर भी स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन न हुआ था । दर्द भी अधिक था । वे किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वापिस लौटने के लिये बाबा से अनुमति माँगने गये । यह देखकर शामा ने बाबा से प्रार्थना की कि, "स्वामी के कान में अधिक पीड़ा है । आप इन पर कृपा करो ।" बाबा आश्वासन देकर बोले, "अल्लाह अच्छा करेगा ।" स्वामीजी वापस पूना लौट गये और एक सप्ताह के बाद उन्होंने शिरडी को पत्र भेजा कि "पीड़ा शान्त हो गई है । परन्तु सूजन अभी पूर्ववत् ही है ।" सूजन दूर हो जाय, इसके लिए वे शल्यचिकित्सा (आपरेशन) कराने बम्बई गये । शल्यचिकित्सा विशेषक्ष (सर्जन) ने जाँच करने के बाद कहा कि शल्यचिकित्सा (आपरेशन) की कोई आवश्यकता नहीं । बाबा के शब्दों का गूढ़ार्थ हम निरे मूर्ख क्या समझें?

काका महाजनी
काका महाजनी नाम के एक अन्य भक्त को अतिसार की बीमारी हो गई । बाबा का सेवा-क्रम कहीं टूट न जाय, इस कारण वे एक लोटा पानी भरकर मस्जिद के एक कोने में रख देते थे, ताकि शंका होने पर शीघ्र ही बाहर जा सकें । श्री साईबाबा को तो सब विदित ही था । फिर भी काका ने बाबा को सूचना इसलिये नहीं दी कि वे रोग से शीघ्र ही मुक्ति पा जायेंगे । मस्जिद में फर्श बनाने की स्वीकृति बाबा से प्राप्त हो ही चुकी थी, परन्तु जब कार्य प्रारम्भ हुआ तो बाबा क्रोधित हो गये और उत्तेजित होकर चिल्लाने लगे, जिससे भगदड़ मच गई । जैसे ही काका भागने लगे, वैसे ही बाबा ने उन्हें पकड़ लिया और अपने सामने बैठा लिया । इस गडबड़ी में कोई आदमी मूँगफली की एक छोटी थैली वहाँ भूल गया । बाबा ने एक मुट्ठी मूँगफली उसमें से निकाली और छील कर दाने काका को खाने के लिये दे दिये । क्रोधित होना, मूँगफली छीलना और उन्हें काका को खिलाना, यह सब कार्य एक साथ ही चलने लगा । स्वंय बाबा ने भी उसमें से कुछ मूँगफली खाई । जब थैली खाली हो गई तो बाबा ने कहा कि मुझे प्यास लगी है । जाकर थोड़ा जल ले आओ । काका एक घड़ा पाना भर लाये और दोनों ने उसमें से पानी पिया । फिर बाबा बोले कि, "अब तुम्हारा अतिसार रोग दूर हो गया । तुम अपने फर्श के कार्य की देखभाल कर सकते हो ।" थोडे ही समय में भागे हुए लोग भी लौट आये । कार्य पुनः प्रारम्भ हो गया । काका कारो अब प्रायः दूर हो चुका था । इस कारण वे कार्य में संलग्न हो गये । क्या मूँगफली अतिसार रोग की औषधि है ? इसका उत्तर कौन दे ? वर्तमान चिकित्सा प्रणाली के अनुसार तो मूँगफली से अतिसार में वृद्घि ही होती है, न कि मुक्ति । इस विषय में सदैव की भाँति बाबा के श्री वचन ही औषधिस्वरुप थे ।

हरदा के दत्तोपन्त
हरदा के एक सज्जन, जिनका नाम श्री दत्तोपन्त था, 14 वर्ष से उदररोग से पीड़ित थे । किसी भी औषधि से उन्हें लाभ न हुआ । अचानक कहीं से बाबा की कीर्ति उनके कानों में पड़ी कि उनकी दृष्टि मात्र से ही रोगी स्वस्थ हो जाते हैं । अतः वे भी भाग कर शिरडी आये और बाबा के चरणों की शरण ली । बाबा ने प्रेम-दृष्टि से उनकी ओर देखकर आशीर्वाद देकर अपना वरद हस्त उनके मस्तक पर रखा । आशीष और उदी प्राप्त कर वे स्वस्थ हो गये तथा भविष्य में फिर कोई पीड़ा न हुई ।
इसी तरह के निम्नलिखित तीन चमत्कार इस अध्याय के अन्त में टिप्पणी में दिये गये हैं –
माधवराव देशपांडे बवासीर रोग से पीडि़त थे । बाबा की आज्ञानुसार सोनामुखी का काढ़ा सेवन करने से वे नीरोग हो गये । दो वर्ष पश्चात् उन्हें पुनः वही पीड़ा उत्पन्न हुई । बाबा से बिना परामर्श लिये वे उसी काढ़े का सेवन करने लगे । परिणाम यह हुआ कि रोग अधिक बढ़ गया । परन्तु बाद में बाबा की कृपा से शीघ्र ही ठीक हो गया ।
काका महाजनी के बड़े भाई गंगाधरपन्त को कुछ वर्षों से सदैव उदर में पीड़ा बनी रहती थी । बाबा की कीर्ति सुनकर वे भी शिरडी आये और आरोग्य-प्राप्ति के लिये प्रार्थना करने लगे । बाबा ने उनके उदर को स्पर्श कर कहा, "अल्लाह अच्छा करेगा ।" इसके पश्चात् तुरन्त ही उनकी उदर-पीड़ा मिट गई और वे पूर्णतः स्वस्थ हो गये ।
श्री नानासाहेब चाँदोरकर को भी एक बार उदर में बहुत पीड़ा होने लगी । वे दिनरात मछली के समान तड़पने लगे । डाँ. ने अनेक उपचार किये, परन्तु कोई परिणाम न निकला । अन्त में वे बाबा की शरण में आये । बाबा ने उन्हें घी के साथ बर्फी खाने की आज्ञा दी । इस औषधि के सेवन से वे पूर्ण स्वस्थ हो गये ।
इन सब कथाओं से यही प्रतीत होता है कि सच्ची औषधि, जिससे अनेंकों को स्वास्थ्य-लाभ हुआ, वह बाबा के केवल श्रीमुख से उच्चरित वचनों एवं उनकी कृपा का ही प्रभाव था ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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Tuesday, January 29, 2013

Fwd: [mysaibaba20] Akhand Naam Jaap (Mississauga, Canada)



---------- Forwarded message ----------
From: Pardeep Kaushal <pardeepji@ymail.com>
Date: Tue, Jan 29, 2013 at 8:02 AM
Subject: [mysaibaba20] Akhand Naam Jaap (Mississauga, Canada)
To:


SAIBABA AKHAND (Nonstop) NAAMJAAP IN MISSISSAUGA (CANADA).
Come And Feel The Power Of NaamSumiran
 
Shri Sachidananda Sadguru Sainath Maharaj Ki Jai!!
Om Sai Ram,
              You are cordially invited for our 3rd annual Akhand (Non Stop) Shri Sai Baba Naam Sumiran on family day long weekend on Saturday 16Th, February 2013 from 1:30 p.m. till 8:30 p.m. at Sai Niwas in Mississauga (Ontario) Canada. Please call 416-895-7905 or email pardeepji@ymail.com for directions and participation. Naam jaap can be in any chosen form of God as our Baba always said," Sab Ka Malik Ek." There will be various NaamJaap during this time.No language or religion barrier.
                Let us celebrate Family Day Long Weekend with the Head of Family and feel the vibrations of continuous Naam Jaap.
Just bring pure devotion and bless us and get blessed yourself.
Please feel free to forward this message to your family, friends & other spiritually inclined devotees.
Parshaad (Preeti Bhoj) will be provided to all devotees at closing, tea and snacks will be served around 5.30 p.m.
 
                 Baba Kakad Aarti, Abhishek, Pujan will also be performed (Program will start at 7.30 A.M.). At 1.25 P.M. approx. Sai Swagtam will be recited to welcome Baba into sabha mandap and also so that every devotee takes his/her place in time. Please note there will be no chatting or socializing during naam jaap at any part of the house, feel free to do so after the naam jaap.
                 P.S.:- There will be strictly Naam Jaap only during this time to keep Naam Sumiran Akhand (Non stop), Dhoop Aarti will be offered at closing. Please No Bhajans, experience sharing, stories, parayan or anything else during Naam Jaap. If willing Bhajans can be sung after Dhoop Aarti .
            Please reply a.s.a.p. if you will be attending, so that we can make proper  arrangement. Baba will be waiting for you.
 
 
If You Look At Me , I Look At You.
 
 





Friday, January 11, 2013

Fwd: [HamareSaiBaba] shirdi sai baba teachings



---------- Forwarded message ----------
From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: Fri, Jan 11, 2013 at 2:51 PM
Subject: [HamareSaiBaba] shirdi sai baba teachings
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>






In chapter XXII of Shri Sai Satcharitra,

Baba gives His opinion below on a question, whether the serpents and such creatures be killed or not.

He says, "God lives in all beings and creatures, whether they be serpents or scorpions. He is the Great Wirepuller of the world, and all beings, serpents or scorpions etc. obey His command! Unless He wills it nobody can do any harm to others. The world is all dependent on Him and no one is independent. So we should take pity and love all creatures, leave off killings and be patient. The Lord (God) is the Protector of all."



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