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parampujy Guruvar Sudhanshuji Maharaj ka Shishay

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Sunday, March 10, 2013

Fwd: jai shivshanker by guruji



---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>
Date: Sun, Mar 10, 2013 at 2:04 PM
Subject: jai shivshanker by guruji
To:


jai shivshanker by guruji

http://www.youtube.com/watch?v=hKjTwTHiuXQ




The full Mahamrityunjaya Mantra goes as follows:




Subhash Bakshi
The full Mahamrityunjaya Mantra goes as follows:

Haung Joong Sah Om Bhur Bhuvah Svah
Om Tryambakam Yajaamahe Sugandhim Pushtivardhanam Urvarukamiva Bandhanaan Mrityurmukshiya Mamritaat
Svah Bhuvah Bhur Om Sah Joong Haung



शिव स्तुति




Reeta Patial
शिव स्तुति
महाशिवरात्रि पर भगवन शिव के विराट स्वरुप को आत्मा में उजागर कीजिये १ शिव रात्रि पर्व अध्यात्मिक उल्लास में मगन कर देने वाला पवन पर्व है .शिव भारतीय जीवन की उर्जा ऒर रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है .शिव भारत की धरती की संस्कृति में समाहित है .
सत्यम शिवम् सुन्दरम भारतीय संस्कृति का आदर्श है. सत्ये ही शिव शिव ही सुन्दर है शिव स्वास्थ्य प्रद ऒशधियो के परम ज्ञाता , ज्ञान योग विद्या व्याख्यान तथा सभी शास्त्रों में परांगत होने के साथ ही कुशल नर्तक तथा प्रवर्तक भी है . सभी प्रकार के वाद्ये बजने में कुशल होने से शिव सर्व्तुरिये निनादी भी है . तांडव प्रलय के सूचक है और प्रलयकारी है पुनर्निर्माण के प्रतीक है, त्रितिये नेत्र दस निकट चन्द्रमा होने से शिव चंद्रमोली है. त्रिनेत्रधारी शिव त्रयम्बक है.
संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में शिव रूद्र नाम से पूजे जाते है . देवाधिदेव रूद्र रूप में शिव अत्यंत शक्तिशाली, विशालकाय,द्रुतगामी व कल्याणकारी होने के साथ ही भयंकर भी है. शिव विध्वंसक भी है , यद्यपि हिन्दुओं को देवत्रयी में शिव विध्वंस के देवता लगते है परन्तु समय समय पैर उन्होंने संसार को संकतो से मुक्त किया है.
शिव सर्वव्यापी परब्रहम है. शिव सर्वेश्वर है, शिव महाकालेश्वर है. शिव का डमरू आकाश का प्रतीक है .सर्प वायु का , गंगा जल का , त्रिशूल पृथ्वी का , त्रितिये नेत्र अग्नि व ज्ञान का ,वृषभ धर्म का ,चन्द्रमा संत का ऒर नीलकंठ त्याग का प्रतीक है.
शिव की उपासना भारतीय कला और संस्कृति के प्रतीक रूप में दीर्घ कल से होती आ रही है. शिव ने देश को एक सूत्र में पिरोया है. शिव देश के देवल सभ्य जाती के ही नहीं बल्कि वनों में कंदमूल खा कर नग्नावस्था में रहने वालो के भी प्रधान देव रहे है, त्रिलोकी के नाथ शिव आशुतोष है, शीघ्र प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ,भोलेभंदारी है, शिव ऒघददानी है.योगेश्वर है शिव.
हिमालये रजा की कन्या पारवती शिव की अर्धांगिनी है.पार्वती सुख सुहाग की वरदात्री है
आदिशंकराचार्य जी ने और संत तुलसी दस जी ने शिव और विष्णु को एक ही इश्वर केरूप में स्मरण किया है, रामचरित मानस में भगवन श्रीराम घोषणा करते है
शिव द्रोही मम दस कहावा
सो नर मोहि सपनेहु नहीं भावा
महाशिवरात्रि परमात्मा शिव के डिवए आलोकिक रूप के स्मरण करने का ,प्रतिस्पर्धा दे दुःख दर्द भरे जीवन में शिव शंकल्प दृढ करने का पुण्ये अवसर है

सभी मिल के बोलिए .हर हर महादेव की जय. ऒम नमो शिवाये



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