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Friday, September 28, 2012

[HamareSaiBaba] shirdi sai teachings



 Maneesh Bagga



ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं 
साईं नाथ को देखिये, कितना हृदय विशाल |
रहते जिसके पास में, कर दें माला माल ||
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे



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श्री साईं-कथा आराधना (भाग-12)
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

संजीवनी समान ऊदी देते साईंनाथ
माथे पे सबके लगा दुआ देते साईंनाथ
ऊदी ने ऐसे-ऐसे चमत्कार दिखाए
जैसे साईं से सारा जग जीवन है पाए
जब एक बार मैना की प्रसव-पीड़ा बढ़ गयी
तब बाबा की ऊदी उसकी रक्षक बन गयी
स्वयं साईं ही गाड़ी ले जामनेर थे आए
पर अपनी इस लीला को थे सबसे छुपाये
ऊदी का घोल पीने से सब ठीक हो गया
मैना के सुत से हर दिल प्रसन्न हो गया
कोई ना जान सका था प्रभु की ये माया
भक्तों की खातिर बाबा ने हर रूप बनाया

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

मेधा का भ्रम दूर करने की चाह में
सपने में साईं ने उसे त्रिशूल था दिया
शिव चरणों में फिर अपनी प्रीत के कारण
मेधा ने बाबा को शिव-शंकर ही मान लिया
साईं का न कोई रूप था और न कोई अंत
सर्वभूतों में व्याप्त श्री साईं थे अनंत
साईं साईं साईं साईं जिसने जप लिया
भव के सागर से वो तो पार उतर गया
जो भी श्री साईं का नित स्तुति है गाता
बिन मांगे वो सब ही शीघ्र है पाता
मेधा की मौत पे साईं ने शोक जताया
और उसको अपना सच्चा भक्त बताया

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए.......


मद्रासी भजनी मेला
..................
लगभग सन् 1916 में एक मद्रासी भजन मंडली पवित्र काशी की तीर्थयात्रा पर निकली । उस मंडली में एक पुरुष, उनकी स्त्री, पुत्री और साली थी । अभाग्यवश, उनके नाम यहाँ नहीं दिये जा रहे है । मार्ग में कहीं उनको सुनने में आया कि अहमदनगर के कोपरगाँव तालुका के शिरडी ग्राम में श्री साईबाबा नाम के एक महान् सन्त रहते है, जो बहुत दयालु और पहुँचे हुए है । वे उदार हृदय और अहेतुक कृपासिन्धु है । वे प्रतिदिन अपने भक्तों को रुपया बाँटा करते है । यदि कोई कलाकार वह
ाँ जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता है तो उसे भी पुरस्कार मिलता है । प्रतिदिन दक्षिणा में बाबा के पास बहुत रुपये इकट्ठे हो जाया करते थे । इन रुपयों में से वे नित्य एक रुपया भक्त कोण्डाजी की तीनवर्षीय कन्या अमनी को, किसी को दो रुपये से पाँच रुपये तक, छः रुपये अमनी की माली को और दस से बीस रुपये तक और कभी-कभी पचास रुपये भी अपनी इच्छानुसार अन्य भक्तों को भी दिया करते थे । यह सुनकर मंडली शिरडी आकर रुकी । मंडली बहुत सुन्दर भजन और गायन किया करती थी, परन्तु उनका भीतरी ध्येय तो द्रव्यो
पार्जन ही था । मंडली में तीन व्यक्ति तो बड़े ही लालची थे । केवल प्रधान स्त्री का ही स्वभाव इन लोगों से सर्वथा भिन्न था । उसके हृदय में बाबा के प्रति श्रद्घा और विश्वास देखकर बाबा प्रसन्न हो गये । फिर क्या था । बाबा ने उसे उसके इष्ट के रुप में दर्शन दिये और केवल उसे ही बाबा सीतानाथ के रुप में दिखलाई दिये, जब कि अन्य उपस्थित लोगों को सदैव की भाँति ही । अपने प्रिय इष्ट का दर्शन पाकर वह द्रवित हो गई तथा उसका कंठ रुँध गया और आँखों से अश्रुधारा बहने लगी । तभी प्रेमोन्मत हो वह ताली बजाने लगी । उसको इस प्रकार आनन्दित देख लोगों को कौतूहल तो होने लगा, परन्तु कारण किसी को भी ज्ञात न हो रहा था । दोपहर के पश्चात उसने वह भेद अपने पति से प्रगट किया । बाबा के श्रीरामस्वरुप में उसे कैसे दर्शन हुए इत्यादि उसने सब बताया । पति ने सोचा कि मेरी स्त्री बहुत भोली और भावुक है, अतः इसे राम का दर्शन होना एक मानसिक विकार के अतिरिक्त कुछ नहीं है । उसने ऐसा कहकर उसकी उपेक्षा कर दी कि कहीं यह भी संभव हो सकता है कि केवल तुम्हें ही बाबा राम के रुप में दिखे ओर अन्य लोगों को सदैव की भाँति ही । स्त्री ने कोई प्रतिवाद न किया, क्योंकि उसे राम के दर्शन जिस प्रकार उस समय हुए थे, वैसे ही अब भी हो रहे थे । उसका मन शान्त, स्थिर और संतृप्त हो चुका था ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 29
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Friday, September 21, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] Thirupathi Abhishekam



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From: Maneesh Bagga




Not everyone is blessed with this gift, but you are.......
















Be Blessed……

Forward it to at least those who have not seen this
Blessed moment

.
 
 
 
 




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Tuesday, September 18, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh



---------- Forwarded message ----------
From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/18
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>



ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं 
जीवन में फिर आपके, ख़ुशी न होगी अस्त |
साईं सेवा प्रण लीजिये, सभी रहोगे मस्त ||
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे



पवित्र ग्रन्थों का प्रदान
......................

गत अध्याय में बाबा की उपदेश-शैली की नवीनता ज्ञात हो चुकी है । इस अध्याय में उसके केवल एक उदाहरण का ही वर्णन करेंगे । भक्तों को जिस ग्रन्थविशेष का पारायण करना होता थे, उसे वे बाबा के कर कमलों में भेंट कर देते थे और यदि बाबा उसे अपने करकमलों से स्पर्श कर लौटा देते तो वे उसे स्वीकार कर लेते थे । उनकी ऐसी भावना हो जाती थी कि ऐसे ग्रन्थ का यदि नित्य पठन किया जायेगा तो बाबा सदैव उनके साथ ही होंगे । एक बार काका महाजनी श्री एकनाथी भाग
वत लेकर शिरडी आये । शामा ने यह ग्रन्थ अध्ययन के लिये उनसे ले लिया और उसे लिये हुए वे मसजिद में पहुँचे । तब बाबा ने ग्रन्थ शामा से ले लिया और उन्होंने उसे स्पर्श कर कुछ विशेष पृष्ठों को देखकर उसे सँभालकर रखने की आज्ञा देकर वापस लौटा दिया । शामा ने उन्हें बताया कि यह ग्रन्थ तो काकासाहेब का है और उन्हें इसे वापस लौटाना है । तब बाबा कहने लगे कि नही, नही, यह ग्रन्थ तो मैं तुम्हें दे रहा हूँ । तुम इसे सावधानी से अपने पास रखो । यह तुम्हें अत्यन्त उपयोगी सिदृ होगा । कुछ दिनों के पश्
चात काका महाजनी पुनः श्रीएकनाथी भागवत की दूसरी प्रति लेकर आये और बाबा के करकमलों में भेंट कर दी, जिसे बाबा ने प्रसाद-स्वरुप लौटाकर उन्हें भी उसे सावधानी से सँभाल कर रखने की आज्ञा दी । साथ ही बाबा ने उन्हें आश्वासन दिया कि यह तुम्हें उत्तम स्थिति में पहुँचाने में सहायक सिदृ होगा । काका ने उन्हें प्रणाम कर उसे स्वीकार कर लिया ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 27)


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Saturday, September 15, 2012

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From: Lalit Garg


Sunday, September 9, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh



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From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/8
Subject: [HamareSaiBaba] Sai Sandesh
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>




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ॐ साईं श्री साईं ॐ श्री साईं 
महा भयानक दुःख भरा, मोहरूप भव कूप 
बाहं पकड़ काडें बाबा, अपनी दया अनूप 
श्री साईं कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे 
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Sunday, September 2, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] खुशालचन्द (राहातानिवासी)



---------- Forwarded message ----------
From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/2
Subject: [HamareSaiBaba] खुशालचन्द (राहातानिवासी)
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>






खुशालचन्द (राहातानिवासी)
ऐसा कहते है कि प्रातः बेला में जो स्वप्न आता है, वह बहुधा जागृतावस्था में सत्य ही निकलता है। ठीक है, ऐसा ही होता होगा। परन्तु बाबा के सम्बन्ध में समय का ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं था। ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत है – बाबा ने एक दिन तृतीय प्रहर काकासाहेब को ताँगा लेकर राहाता से खुशालचन्द को लाने के लिये भेजा, क्योंकि खुशालचन्द से उनकी कई दोनों से भेंट न हुई थी। राहाता पहुँच कर काकासाहेब ने यह सन्देश उन्हें सुना दिया। यह सन्देश सुनकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ
और वे कहने लगे कि दोपहर को भोजन के उपरान्त थोड़ी देर मुझे झपकी आ गई थी, तभी बाबा स्वप्न में आये और मुझे शीघ्र ही शिरडी आने को कहा। परन्तु घोड़े का उचित प्रबन्ध न हो सकने के कारण मैंने अपने पुत्र को यह सूचना देने के लिये ही उनके पास भेजा था। जब वह गाँव की सीमा तक ही पहुँचा था, तभी आप सामने से ताँगे में आते दिखे। वे दोनों उस ताँगे में बैठकर शिरडी पहुँचे तथा बाबा से भेंटकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । बाबा की यह लीला देख खुशालचन्द गदगद हो गये।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय-30)


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