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Sunday, September 2, 2012

Fwd: [HamareSaiBaba] खुशालचन्द (राहातानिवासी)



---------- Forwarded message ----------
From: Maneesh Bagga <maneeshbagga@saimail.com>
Date: 2012/9/2
Subject: [HamareSaiBaba] खुशालचन्द (राहातानिवासी)
To: hamare sai <hamaresaibaba@googlegroups.com>






खुशालचन्द (राहातानिवासी)
ऐसा कहते है कि प्रातः बेला में जो स्वप्न आता है, वह बहुधा जागृतावस्था में सत्य ही निकलता है। ठीक है, ऐसा ही होता होगा। परन्तु बाबा के सम्बन्ध में समय का ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं था। ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत है – बाबा ने एक दिन तृतीय प्रहर काकासाहेब को ताँगा लेकर राहाता से खुशालचन्द को लाने के लिये भेजा, क्योंकि खुशालचन्द से उनकी कई दोनों से भेंट न हुई थी। राहाता पहुँच कर काकासाहेब ने यह सन्देश उन्हें सुना दिया। यह सन्देश सुनकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ
और वे कहने लगे कि दोपहर को भोजन के उपरान्त थोड़ी देर मुझे झपकी आ गई थी, तभी बाबा स्वप्न में आये और मुझे शीघ्र ही शिरडी आने को कहा। परन्तु घोड़े का उचित प्रबन्ध न हो सकने के कारण मैंने अपने पुत्र को यह सूचना देने के लिये ही उनके पास भेजा था। जब वह गाँव की सीमा तक ही पहुँचा था, तभी आप सामने से ताँगे में आते दिखे। वे दोनों उस ताँगे में बैठकर शिरडी पहुँचे तथा बाबा से भेंटकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । बाबा की यह लीला देख खुशालचन्द गदगद हो गये।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय-30)


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