मति चार प्रकार की होती है। सुमति, कुमति, दुर्मती और महामति। मेरा फायदा हो या न हो, दुसरे का अवश्य होना चाहिए, यह सुमति है। मेरा फायदा न हो तो दुसरे का भी न हो, यह कुमति है। मेरा कोई लाभ नहीं परन्तु दुसरे का नुक्सान अवश्य होना चाहिए , यह दुर्मती है। और महामति होती है की मेरा भले ही नुकसान हो किन्तु दुसरे का फायदा अवश्य होना चाहिए यह देवताओं की मति है।
परम पूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज
परम पूज्य श्री सुधान्शुजी महाराज
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