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जिज्ञासु : गुरुदेव ! स्वयं को मूल्यवान बनाने और समाज के लिए स्वयं को उपयोगी बनाने के लिए हमें
क्या करना चाहिए ?
पुज्य गुरुदेव ! आप सबको परमात्मा ने यह जीवन दिया ! इसमें कलाओं का विकास होना चाहिये ! इस जीवन को कीमती बनायें और कीमती बनाने का तरीका क्या हो सकता हे ! प्राण उर्जा को आदमी ने अपनी ईर्ष्या मे ,रोग में,भोग में जलाया ! जबकी इसका उपयोग आत्म उत्थआन के लिए किया जाना चाहिए ! इसके बाद अगला सोपान आता हे मन की दुनिया का ! मानसिक रूप से हम अपने आपको प्रसन्न रखें , खिला हुआ रखें ! अपना बौद्धिक् विकास करें ! बुद्धि तेज हो , लेकिन प्रेम से और धर्म से जुडी हुई हो ! बिगडी हुई बुद्धी अपना भी विनाश करती हे और समाज का भी विनाश करती हे ! इसलिए बुद्धि को धर्म की शरण में लाना चाहिये !
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